श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥ चारों जुग परताप तुह्मारा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥ तुह्मरे भजन राम को पावै ।
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“You flew in direction of the Sun who's A large number of decades of Yojanas away, thinking about him for a sweet fruit.”
भावार्थ – हे पवनसुत श्री हनुमान जी! आप सारे संकटों को दूर करने वाले हैं तथा साक्षात् कल्याण की मूर्ति हैं। आप भगवान् श्री रामचन्द्र जी, लक्ष्मण जी और माता सीता जी के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिये।
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व्याख्या – श्री हनुमान चालीसा के पाठ की फलश्रुति इस तथा अगली चौपाई में बतलायी गयी है। संसार में किसी प्रकार के बन्धन से मुक्त होने के लिये प्रतिदिन सौ पाठ तथा दशांशरूप में ग्यारह पाठ, इस प्रकार एक सौ ग्यारह पाठ करना चाहिये। इससे व्यक्ति राघवेन्द्र प्रभु के सामीप्य का लाभ उठाकर अनन्त सुख प्राप्त करता है।
बुद्धिहीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार।
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तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥ और मनोरथ जो कोई लावै ।
◉ श्री हनुमंत लाल की पूजा आराधना में हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और संकटमोचन अष्टक का पाठ बहुत ही प्रमुख माने जाते हैं।